कोरोना के संकटकाल में भी पक्ष-विपक्ष की सियासत ऐसे सुलग रही है मानो आने
वाले दिनों में देश में आग लगनी लाजमी है. इस मौसम में आग लगाने की जरूरत क्या है गर्मी
ही काफी है भाई. प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के मुद्दे पर जमकर सियासी
दांव-पेंच खेले जा रहे हैं. पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे पर जमकर कीचड़ उछाल रहे हैं.
अगर वह इन मजदूरों की मदद कर भी रहे हैं तो सिर्फ अपने फायदे के लिए, लेकिन वो
कहते हैं ना जहां चाह वहां राह. लेकिन यह राह शायद राजनीति के दलदल में डूबती जा
रही है.
वहीं इन सब से हटकर फिल्म इंड्स्ट्री के रील विलेन सोनू सूद ने अपने काम और मदद के जज्बे से प्रवासी मजदूरों की मदद कर रहें. अगर किसी भी मजदूर को अपने घर वापस जाना होता है तो वह सरकार से नहीं बल्कि सोनू सूद से कहता है कि घर जाना है.
सबसे पहले सोनू ने कर्नाटक के कई मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए बसों का इंतजाम कराया था. सोनू सूद से मजदूरों का दुख देखा नहीं गया और उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से अनुमति लेकर प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए कई बसों का इंतजाम करवाया.
बसों के इंतजाम के अलावा सोनू ने पंजाब के डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए
1,500 पीपीई किट भी दान
की. उन्होंने मुंबई का अपना होटल स्वास्थ्यकर्मियों को रहने के लिए भी दिया है.
सोनू सूद रमज़ान के महीने में भिवंडी इलाके में हजारों गरीबों
और प्रवासी मजदूरों को खाना भी खिला रहे हैं.
सोनू के काम की हरतरफ तारीफ हो रही है. सोशल मीडिया पर सोनू
छाए हुए हैं.
लॉकडाउन 1 से ही ट्रेन और बस सेवा रोक दी गई थी. लॉकडाउन बढ़ाने के बाद से ही
मजदूरों ने पैदल ही अपने घर की डगर पकड़ कुछ घर पहुंचें कुछ ने रास्ते में ही दम
तोड़ा. लेकिन सड़क पर भीड़ कम नहीं हुई अब सरकार ने मजदूरों के लिए बसें और
ट्रेनें चलवा दी है.
सोनू सूद के मदद का सिलसिला तो जारी है. इस संकट की घड़ी में पार्टियां अगर
सियासी रोटियां सेंकना छोड़ कर लोगों की मदद करने की कोशिश करें तो फर्जी नाटक
करने की जरूरत नहीं, क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती, ये पब्लिक है.