कलयुग के आखिरी दिन तक श्री राम का जाप करते हुए बजरंगबली इसी धरती पर मौजूद रहेंगे। ऐसा हमारे ग्रंथों और पौराणिक कहानियों में लिखा है। लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की खूबसूरत कहानी है बड़ा मंगल। श्रीराम के परमभक्त केसरी नंदन अपने भक्तों की पुकार भी बड़ी जल्दी सुनते हैं। 17 मई से बड़ा मंगल का शुभारंभ हो रहा है।
इस बार 17 मई, 24 मई, 31 मई, सात जून और 14 जून को बड़े मंगल पड़ रहे हैं। लखनऊ में खासतौर से बड़ा मंगल मनाया जाता है। यहीं से इसकी शुरुआत हुई है।
भोलेनाथ के 11वें रुद्रावतार हनुमान इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात देव हैं। कलियुग में शंकरसुमन की भक्ति ही दुखों और मुसीबतों से बचाती है।
पवनपुत्र की भक्ति के साथ ही लखनऊ में शुरू हो जाता है भंडारों का दौर। बड़े मंगल पर चिड़ियों के चहचाहने से पहले ही लोग बड़े मंगल की तैयारी में लग जाते हैं और सूरज के चढ़ने के साथ ही तैयारियां भी पूरी हो जाती हैं।
मारुती नंदन की भक्ति के साथ ही जेठ की दुपहरी में भंडारों में लोगों कतारें लगने लगती हैं। चाहे वह रिक्शा चलाने वाला हो या मजदूर या फिर अपनी चमचमाउवा गाड़ी से उतरने वाला ही क्यों न हो। हर कोई भंडारे की भीड़ में हाथ बढ़ाए नजर आ ही जाएगा।
रास्ते हो या गली-नुक्कड़ कुछ कदमों की दूरी पर ही भंडारे की पूड़ी सब्जी की महक आ जाएगी। नवाबों के समय से शुरू हुए भंडारे की गुड़धनिया की जगह अब कई तरह के पकवानों ने ले ली है। गर्ममममी से राहत देता शलेकिन लोगों की नीयत आज भी वही है।
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400 साल पुरानी बड़ा मंगल की परंपरा से जुड़ी कहानी और इतिहास भी बहुत खास है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भीम को अपने बल का बहुत घमंड हो गया था, जिसे हनुमान जी ने चुटकी में तोड़ दिया था। दूसरी मान्यता के अनुसार हनुमान जी की प्रभु श्री राम से मुलाकात हुई थी।
pc- Anil Jaiswal (सिर्फ इस तस्वीर के लिए बाकी दोनों गूगल की हैं)