मुस्कुराइए आप
लखनऊ में हैं. जहां एक ओर पूरा देश धर्म जाति के नाम पर बिखरा हुआ है. वहीं लखनऊ
में 400 साल पुरानी परंपरा लोगों को जोड़े हुए है. लखनऊ में बड़े मंगल का बहुत खास महत्व
है. हनुमान जी के भक्तों के लिए यह किसी त्यौहार से कम नहीं हैं. ज्येष्ठ मास में
पड़ने वाले सभी मंगल 'बडा़ मंगल' के रूप में मनाए जाते हैं.
आज के दिन भक्त जो भी हनुमान जी से जो मांगते हैं. उसकी मुराद जरुर पूरी होती है. भगवान
शिव के 11 वें अवतार हनुमान जी को इस दिन अमर रहने का वरदान मिला था.
इसके पीछे की
कहानी भी बहुत शानदार है. इस परम्परा की शुरुआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगलशासक ने
की थी. नवाब मोहमद अली शाह का बेटा सआदत अली खां एक बार गंभीर रूप से बीमार हो गए.
उनकी बेगम रूबिया ने उनका इलाज कई जगह कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुए. बेटे की
सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर पहुंची.
मंदिर के पुजारी
ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने को कहा बेगम रूबिया रात में बेटे को मंदिर में
ही छोड़ गईं. दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला. इसके बाद रूबिया ने
इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. जीर्णोद्धार के समय लगाया गया
प्रतीक चांदतारा का चिन्ह आज भी मंदिर के गुंबद पर लगा हुआ है.
मंदिर के
जीर्णोद्धार के बाद ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले मंगल को
पूरे नगर में गुडधनिया (भुने हुए गेहूं में गुड मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद)
बंटवाया और प्याऊ लगवाए थे. तभी से इस बड़े मंगल की की नींव पड़ी.
इसके अलावा भी एक
और कहानी है. नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को सपना आया कि उन्हें
हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है. सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिये आलिया
ने हनुमान जी की मूर्ति मंगवाई. हनुमान जी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी. मूर्ति
को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा.
आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया जो आज नया हनुमान मंदिर कहा जाता
है. ज्येष्ठ महीने में पूरा मंदिर बनकर तैयार हुआ. मंदिर बनने पर मूर्ति की प्राण
प्रतिष्ठा कराई गई और बड़ा भंडारा हुआ.