देवों
के देव महादेव के भक्तों के लिए आज महाशिवरात्रि का दिन सबसे खास है. भोलेनाथ के
भक्त उन्हें खुश करने के लिए सबकुछ करते हैं. भोलेनाथ की पूजा में शिवलिंग का विशेष
महत्व है.
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर शिवलिंग पूजा का विशेष महत्व है. छोटे से
छोटे मंदिर में शिवलिंग जरुर होता है. इसी से पता चलता है शिवलिंग कितना अहम रोल
प्ले करता है. भगवान शिव अनंत काल और सर्जन के प्रतीक हैं.
भगवान शिव को लिंग के रूप में देखा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं लिंग की उत्पत्ति
कैसे और क्यों हुई नहीं तो कोई बात नहीं मै हूं ना.
शिवलिंग, महादेव के ज्ञान और तेज का
प्रतिनिधित्व करता है. शक्ति के चिह्न के रूप में लिंग की पूजा होती है. भगवान शिव
को देवआदिदेव भी कहा जाता है, जिसका
मतलब है कोई रूप ना होना.
सबसे
पहले तो शिवलिंग का अर्थ जान लीजिए. ‘शिव’ का अर्थ है-‘कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ है- ‘सृजन.
मान्यताओं
की मानें तो लिंग एक विशाल लौकिक अंडाशय है, जिसका
अर्थ है ब्रह्माण्ड. इसे पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है, जहां 'पुरुष' और 'प्रकृति' का जन्म हुआ है.
लिंगमहापुराण
के अनुसार, सबसे पहले शिवलिंग की स्थापना कहां हुई. इसकी स्टोरी काफी दिलचस्प है.
ये
है पहले शिवलिंग की सॉलिड स्टोरी
हुआ
यूं कि एक बार जग के पालनहार विष्णु और परमपिता ब्रह्मा एक-दूसरे को अपना-अपना टशन
दिखा रहे थे. दोनों अपने मुंह मिया मिट्ठू बन रहे थे. जैसा कि हम इंसान अक्सर खुद
को साबित करने के लिए एक-दूसरे को नीचे गिराने की कोशिश करते हैं वैसा ही कुछ ये
दोनों भी कर कर रहे थे एक दूसरे को श्रेष्ठता के बारे में बता रहे थे. लेकिन टशन
के चक्कर में ये झगड़ा बहुते आगे बढ़ गया.
इन
दोनों के झगड़े का निपटारा करने के लिए देवों के देव महादेव को अपना पासा
फेंकना
पड़ा.
अग्नि
की ज्वालाओं से लिपटा हुआ एक विशाल लिंग दोनों देवों के बीच आकर स्थापित हो गया.
और सॉलिड आवाज के साथ शिव ने कहा जो जो इस पत्थर का अंत ढूंढ लेगा, उसे ही ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा.
इसके
बाद दोनों फटाफट अपनी-अपनी मंजिल की ओर निकल गए और लिंग के रहस्य का पता लगाने में
जुट गए. भगवान ब्रह्मा उस लिंग के ऊपर की तरफ बढ़े और भगवान विष्णु नीचे की ओर
जाने लगे. हजारों वर्षों तक जब दोनों देव इस लिंग का पता लगा पाने में नाकाम रहे तो
वह अपनी हार कबूलते हुए फिर उसी जगह पर पहुंचे जहां पर उन्होंने उस विशाल लिंग को
देखा था. लिंग के पास पहुंचते ही दोनों देव उस लिंग से ओम स्वर की ध्वनि सुनाई
देने लगी. इस स्वर को सुनते ही दोनों समझ गए कि ये हम लोगों का बॉस है.
विष्णु
जी ने तो अपनी हार मान ली लेकिन ब्रह्मा जी अभी भी अपने टशन में थे. खुद को कलाकार
साबित करने के लिए झूठ बोल दिए, फिर क्या रायता फैल गया. विष्णु जी को आशीर्वाद और
ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया. विष्णुजी तो हार के भी बाजीगर बन गए. लेकिन ब्रह्मा जी को ना पूजे जाने का श्राप बैठे-बिठाए मिल गया.
तभी
भोलेनाथ ने सस्पेंस खत्म करते हुए अपनी पहचान बताई. शिव ने कहा- मैं शिवलिंग हूं
और न ही मेरा कोई अंत हैं और न ही कोई शुरुआत. उसके बाद वह वहीं शिवलिंग के रुप
में स्थापित होकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए. इसे ही भगवान शिव का सबसे पहला
शिवलिंग माना जाता है.
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