बीते लम्हे जब भी याद आते है चेहरे पर मुस्कान छोड़ जातें है।वो बचपन की शैतानियाँ जब भी याद आती है पल भर में सारी उलझने फुरर हो जाती है।वो बीता हुआ वक्त जब सिर्फ और सिर्फ खेल ही भाता था और पेप्सी पैकेट वाली ही टेस्टी लगती और थोड़ी देर में सारी प्यास बुझ जाती थी।जब भी सफर पर जाते संतरे वाली टाॅफी खाते खाते सारा सफर ही कट जाता था।
गरमी की छुटि्टयो के साथी फिर से कैरम और लूडो हो जाते थे।तब खेल खेल में दोस्ती और लड़ाई हो जाती उसके बाद दोस्ती और दुश्मनी Flames से डिसाइड होती थी।
जब फेसबुक और इंटरनेट नही था दोस्त की फ्रें ड फ्रेंड रिक्वेस्ट दूसरा दोस्त ले जाता था तब दोस्तो का लिस्ट भी लम्बी और ज्यादा करीब होते थे।
जब खुशियाँ साइकिल पे सवार डाकिया अंकल लेकर आते थे।जब एक घर में 5फोन नहीं 5 घरों में एक फोन से सारी बातें होती थी।
जब भी याद आते है वो लम्हे मन में गुदगुदी सी होती है। टीवी पर एक ही चैनल और गिने चुने कायर्क्रम जैसे शक्तिमान जुनियर जी से ही बहुत खुश थे ।आज आॅप्सन तो है पर साथ बैठ कर खुशियों को बांटने का समय किसी के पास नहीं है।छोटी छोटी चीजों से ही खुश हो जाते और पैसो की कीमत उन खुशियों से कम थी।
जब भी याद आता है बीता हुआ वक्त जब ख्वाहिशें बड़ी और उम्मीदे कम थी। तब जिंदगी नादान थी खुशियों का खुला आसमान थी और आने वाले समय का सुनहरा वादा थी।
Monday, 28 September 2015
बीते लम्हे
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