15 जनवरी से शुरू हो चुके कुंभ की महिमा के बारे
में सभी जानते हैं. हिंदू धर्म में खास महत्व रखने वाले कुंभ के बारे में कई
कहानियां सुनी और पढ़ी होंगी, शायद इसके अतुलनीय इतिहास के बारे में भी सभी को पता
हो. एक बार फिर से कुंभ के इतिहास के बारे में जान लेंगे तो सेहत पर कोई फर्क नहीं
पड़ेगा.
आस्था के कुंभ मेले का इतिहास करीब 850 साल पुराना है, जिसकी शुरुआत आदि
शंकराचार्य ने की थी. लेकिन ऐसा माना जाता है कि कुंभ की शुरुआत आदिकाल से ही हो
गई थी. कुंभ का आयोजन पौराणिक और ऐतिहासिक शहर प्रयागराज, जो कुछ महीनों पहले
इलाहाबाद था में हो रहा है.
वैसे तो कहीं भी कुंभ मेले के इतिहास की प्रामाणिक जानकारी नहीं है. लेकिन इसका लिखित
प्राचीन वर्णन सम्राट हर्षवर्धन के समय का है, जिसे चीन के ट्रैवलर ह्वेनसांग ने लिखा था. इसके अलावा इसके
इतिहास की कहानी समुद्र मंथन से भी जुड़ी हुई है.
महर्षि दुर्वासा
यानि एंग्री ऋषि मुनि, जो बात-बात में लोगों को श्राप देते थे. इनके श्राप ने कई लोगों की जिंदगी तबाह कर
दी. इसलिए इनके श्राप के डर से लोग देवता की तरह आदर करते थे. इनके श्राप के कारण ही समुद्र मंथन हुआ.
महर्षि
दुर्वासा ने देवराज इंद्र को दुर्वासा के श्राप से हाहाकार
मच गया. रक्षा के लिए देवताओं और दैत्यों
ने मिलकर समुद्र मंथन किया, जिसमें से अमृत कुम्भ निकला.
इससे पहले की कहानी टीवी शो में देखी ही होगी, इसलिए
ज्यादा बोर नहीं करुंगी. सारा तीम झांमा होने के बाद अमृत कलश नागलोक में
सेफ रखा हुआ था, जिसे लेने के लिए पक्षियों के किंग गरूड़ उसे लेकर आए, लेकिन वापस
आते वक्त गरूड़ जी से चार जगहों हरिद्वार, प्रयाग,
उज्जैन और नासिक पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गई और इन्हीं स्थानों पर
कुंभ मेले का आयोजन होने लगा.
कहानी और इतिहास से
ज्यादा जरूरी है कुंभ क्या है और इसका मतलब क्या है. आस्था के कुंभ से जुड़ी
जानकारियां और इसके बारे में जानने के लिए मेरे ब्लॉग शिखा की सनक से बने
रहिए......
nice
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