चूड़ियां हिंदुस्तान की परंपरा और सभ्यता में सुहाग के रंग से जुड़ी है यही वजह है कि चूड़ियों की खनक हमारी जिंदगी का अहम तरीन हिस्सा बन गई फिल्मों में भी इसको बखूबी दर्शाया गया, चूड़ियों का रंग हम सबकी जिंदगी में रचा बसा है फिर वह कांच की चूड़ी हो या प्लास्टिक की या फिर धातु की तो क्यों ना बात चल उठी है तो फिरोजाबाद की ओर चला जाए जहां घर-घर में यह हुनर पनपता है सवरता है सजता है फिरोजाबाद शहर जिसे चूड़ियों के नाम से जाना जाता है फिरोजाबाद में बेहद नक्काशीदार चूड़ियां बनाई जाती है और इस काम में लाखों मजदूर लगे हुए हैं या यूं कहें कि जिले में लाखों कारीगर चूड़ी बनाने का काम करते हैं इन चमकदार चूड़ियों के पीछे छिपा है इन कारीगरों का अंधकार। भविष्य आइए आपको रूबरू कराते हैं निकुंज यादव के जरिए इन चूड़ियों का रंग।चलिए हमारे साथ एक सफर के साथ जो बेहद हसीन भी है वहाँ गम बे हिसाब है ।
फिरोजाबाद मे चूड़ी उद्योग की सुरुवात जसराना से हुई और जनक रहे रुस्तम उस्ताद.
जसराना फ़िरोज़ाबाद से 40 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है इन चूड़ियों का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं रहा जसराना से फिरोजाबाद आकर बसे रुस्तम उस्ताद ने हिंदुस्तान में कांच की चूड़ी के निर्माण के लिए बेलन भट्टी का काम से तजुर्बा कर चूड़ियों का काम शुरू किया नई नई तकनीक सीखने वह मंबई भी गए रुस्तम उस्ताद ने फ़िरोज़ाबाद ग्लास नाम से पहली चूड़ी की बेलन भट्टी स्थापित की ।
सुहागिनों का प्रतीक चूड़ी जिसको चूड़ी कारीगर दिन रात एक कर बनाने में लगे रहते है वर्षी बाद भी उनके रहन सहन के स्तर में कोई भी बदलाव नही आया है.
इस कारोबार में जिले का लघभग चार लाख मजदूर प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है जिले में लगभग 300 छोटे बड़े कारखाने है इन दिनो कारखानों के मालिकों के सामने गैस की कीमतों को लेकर भारी किल्लत बनी हुई है जिले का चूडी कारोबार पूरी तरह से ठेखा बेस पर उठा हुआ है और फ़िरोज़ाबाद शहर के अमूमन प्रत्येक घर मे चूड़ी का कारोबार होता है यँहा कि बनी हुई चूड़ियां देश के साथ साथ विदेशो में भी भारी डिमांड के साथ भेजी जाती है ऐशे में अब इस कारोबार को बचाने के लिए सरकार को सोचना होगा ओर व्यापारी व मजदूरों को हो रही असुविधाओं को समझ कर पूरा करना होगा ।
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