हाथी घोड़ा पाल की जय कन्हैया लाल की... आज कान्हा के जन्मदिन की धूम पूरे देश में मची हुई. हर गली, मोहल्ले, चौराहे पर कान्हा के जन्मदिन को अपने ढंग से मनाया जा रहा है. मंदिरों में झंकियां सज चुकी हैं. कान्हा के जन्मदिन की तैयारियां कई दिनों पहले से चल रही थी. नटखट कन्हैया के बारे में कई कहानियां सुनी और देखी होंगी. मन हो तो इसे भी पढ़ लीजिएगा.
लोगों का ऐसा मानना है कि कान्हा के जन्म की कहानी सुनने से भक्तों के कष्ट कम होते हैं... सुन तो नहीं सकते, लेकिन हां पढ़ने का मन हो तो पढ़ लीजिएगा.
कान्हा भगवान विष्णु के 8 वें अवतार हैं. ये बात तो सबको पता होगी, फिर भी लिख देती हूं. कान्हा के जन्म की बात करें तो बड़े संकटों के बाद वह इस दुनिया में आए, लेकिन जब आए तो स्वैग से सभी ने उनका स्वागत किया. कान्हा का खौफ उनके जन्म से पहले ही मामा कंस को था, इसलिए मामा कंस ने अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को काल कोठरी में डर की वजह से बंद कर दिया, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है.
भादो मास की अष्टमी की घनघोर काली रात में रोहिणी नक्षत्र में लडु गोपाल ने आंखें खोलीं. उसके बाद वसुदेव कान्हा को अपने बेस्ट फ्रेंड नंद के घर यमुना को पार कर छोड़ आए. उन्होंने कान्हा को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए.
मामा कंस को जैसे ही कारागार से बच्चे की रोने की आवाज सुनी. वह वहां पहुंच गया और कन्या को छीनकर पटक देना चाहा, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और कहा- 'अरे मूर्ख, तुझे मारनेवाला तो वृंदावन जा पहुंचा है. वह जल्द ही तेरे पापों का दंड देगा. मेरा नाम वैष्णवी है और मैं उसी जगद्गुरु विष्णु की माया हूं.' इतना कहकर वह गायब हो गईं.
ये जानने के बाद कान्हा को मारने के लिए मामा कंस ने कई कोशिशें की, लेकिन सारी प्लानिंग बार-बार फेल हो गईं. कान्हा को मारने के लिए मामा कंस ने पूतना, केशी, अरिष्ट नामक, काल नामक जैसे दैत्यों को भेजा, लेकिन मुरली बज्जैया श्याम सलोने का कुछ नहीं बिगाड़ सके.
जब सारे प्लान फेल हो गए तो मामा कंस ने कान्हा और बलराम को मथुरा बुलाया. उनके वहां पहुंचने पर कंस ने पहलवान चाणुर और मुष्टिक के साथ मल्ल युद्ध की घोषणा की. कान्हा और बलराम ने दोनों को ठिकाने लगा दिया. उसके बाद कंस के भाई केशी का संहार किया. सबसे आखिर में कंस की बारी थी तो रेडी बैठे थे मरने के लिए. कान्हा ने मामा कंस का वध किया.
कंस के मरने के बाद सभी देवताओं ने आकाश से दोनों पर फूलों की वर्षा की. उसके बाद कृष्ण ने अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त किया और उग्रसेन को मथुरा की गद्दी सौंप दी. बाकी तो सभी को पता है आगे क्या हुआ...
तो बोलो बंसी बजैय्या की जय...