Wednesday, 1 February 2017

ब्रह्मा जी की सर्जना में आया ट्विस्ट जब ‘वाणी की देवी’ ने की एंट्री


बसंत ऋतु की एंट्री होते ही प्रकृति में नई चेतना और उमंग भर जाती है. इंसान से लेकर पशु-पक्षी भी एक्साइटेड हो जाते हैं. हर दिन नयी उम्मीदों वाली आशा का सूर्योदय होता है. अगले दिन फिर नई उमंग के साथ शानदार एंट्री करता है. वैसे तो माघ का पूरा महीना स्पेशल एनर्जी देता है. लेकिन बसंत पंचमी का पर्व कण-कण में उत्साह भर देता है. प्राचीनकाल से इस दिन को ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती के हैप्पी बर्थडे के रूप में मनाया जाता है. आज के दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं.

जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू और बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है. चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं.

बसंत पंचमी की पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में मनायी जाती है. इस दिन पीले वस्त्र धारण किए जाते हैं.
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें बसंत लोगों का फेवरेट मौसम था. इस मौसम में बागों में, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता.

इस ऋतु का वेलकम करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था, इस दिन विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह बसंत पंचमी का कहलाता था.

बसंत पंचमी की स्टोरी

जग के पालनहार विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों और खासतौर पर मनुष्य की रचना की. अपनी बनाई गई रचना से ब्रह्मा जी खुश नहीं थे. उन्हें कुछ कमी लग रही थी तो क्या. पालनहार से परमीशन लेकर ब्रह्मा जी ने कमण्डल से जल छिड़का. जल छिड़कने के बाद कहानी में आया ट्विस्ट और पृथ्वी में कम्पन होने लगा.

वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई. यह शक्ति कोई और नहीं बल्कि चतुर्भुजी सुंदर स्त्री थी, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी.

ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने की रिक्वेस्ट की. जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई. जलधारा में कोलाहल, पवन चलने से सरसराहट होने लगी. तब ब्रह्मा ने उन्हें वाणी की देवी सरस्वती कहा.

देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है. ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं.

ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

ये परम चेतना हैं. सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं. हममें जो आचार और मेधा है, उसका आधार सरस्वती ही हैं. इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है.
शास्त्रों के अनुसार, श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी.

बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व

त्रेता युग में जब रावण ने सीता माता का किडनैप किया. उसके बाद प्रभु श्रीराम ने माता की खोज में दक्षिण की ओर बढ़े. इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें से एक दंडकारण्य भी था. यहीं शबरी ने राम की भक्ति में लीन होकर उन्हें चख-चखकर मीठे बेर खिलाये. दंडकारण्य का गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है. गुजरात के डांग जिले में शबरी मां का आश्रम था. वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे. आज भी लोग उस शिला को पूजते हैं, जिस पर श्रीराम आकर बैठे थे. शबरी माता का मंदिर भी है.


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