Saturday 11 March 2017

पापा हिरण्यकश्यप और बुआ की बुराई को प्रह्लाद ने लगाया ठिकाने


वैसे तो हर त्यौहार की रंगत अलग होती है. लेकिन होली के क्या कहने हैं. लोग इस दिन सारी दुश्मनी भूल कर लोगों को गले लगाते हैं. दोस्तों के साथ टोलियों में निकलकर लोग इस दिन खूब मस्ती करते है. एक महीने पहले से सारी तैयारियां होने लगती हैं.
होलिका दहन के साथ लोग होली खेलते हैं. हर फेस्टिवल की तरह ही इसकी भी सॉलिड स्टोरी है.
हिरण्यकश्यप एक पापी राजा था जो अपने छोटे भाई की मौत का बदला भगवान विष्णु से लेना चाहता था. पावरफुल बनने के लिए हिरण्यकश्यप ने सालों तक तपस्या की. लास्ट में उसे वरदान मिल ही गया.  वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से इस वरदान के बाद वह खुद को अमर समझने लगा. और लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया. कुछ दिनों बाद उसके घर बेटे ने जन्म लिया,जिसका नाम प्रहलाद था. प्रह्लाद प्यारा सा बालक था. लेकिन भगवान की महिमा महान है. उसका बालक उसके जानी दुश्मन विष्णु का भक्त निकला.
कई बार बेटे को को समझाया लेकिन वह नहीं माना. उसके बाद पापा हिरण्यकश्यप ने बेटे को मारने का फैसला कर लिया. फिर क्या कई बार ट्राई मारा लेकिन बेटे को मौत की नींद नहीं सुला पाएं तो अपनी बहना होलिका को बेटे की सुपारी दे दी. क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जल सकती तो बुआ होलिका को बच्चे की मासूमियत पर जरा भी तरस नहीं आया और आग में बैठ गईं.
उसके बाद का नजारा देख हिरण्यकश्यप के होश उड़ गए, बहना तो राख बनकर किनारे लग गई लेकिन बेटे को कुछ नहीं हुआ. हिरण्यकश्यप का पारा पहले से हाई था अब बहना की मौत ने गुस्से को और बढ़ा दिया. हिरण्यकश्यप ने आव देखा न ताव बेटे को मारने के लिए खुद ही तैयार हो गए. उसके बाद विष्णु जी ने अपने फेवरेट भक्त की जान बचाने के लिए हिरण्यकश्यप को ठिकाने लगा दिया. तभी से होलिका दहन करने के बाद लोग खुशियाँ मनाने के लिए रंग खेलते हैं.  

होलिका और हिरण्यकश्यप की हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है. होलिका दहन में सभी अपनी बुराइयों को जला कर खत्म करते हैं. 

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