Monday 15 May 2017

भंडारा खाने के साथ जानिए लखनऊ में बड़े मंगल की सॉलिड स्टोरी


मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं. जहां एक ओर पूरा देश धर्म जाति के नाम पर बिखरा हुआ है. वहीं लखनऊ में 400 साल पुरानी परंपरा लोगों को जोड़े हुए है. लखनऊ में बड़े मंगल का बहुत खास महत्व है. हनुमान जी के भक्तों के लिए यह किसी त्यौहार से कम नहीं हैं. ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले सभी मंगल 'बडा़ मंगल' के रूप में मनाए जाते हैं. आज के दिन भक्त जो भी हनुमान जी से जो मांगते हैं. उसकी मुराद जरुर पूरी होती है. भगवान शिव के 11 वें अवतार हनुमान जी को इस दिन अमर रहने का वरदान मिला था.
इसके पीछे की कहानी भी बहुत शानदार है. इस परम्परा की शुरुआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगलशासक ने की थी. नवाब मोहमद अली शाह का बेटा सआदत अली खां एक बार गंभीर रूप से बीमार हो गए. उनकी बेगम रूबिया ने उनका इलाज कई जगह कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुए. बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर पहुंची.
मंदिर के पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने को कहा बेगम रूबिया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड़ गईं. दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला. इसके बाद रूबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. जीर्णोद्धार के समय लगाया गया प्रतीक चांदतारा का चिन्ह आज भी मंदिर के गुंबद पर लगा हुआ है.
मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुडधनिया (भुने हुए गेहूं में गुड मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद) बंटवाया और प्याऊ लगवाए थे. तभी से इस बड़े मंगल की की नींव पड़ी.
इसके अलावा भी एक और कहानी है. नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को सपना आया कि उन्हें हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है. सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिये आलिया ने हनुमान जी की मूर्ति मंगवाई. हनुमान जी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी. मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा. आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया जो आज नया हनुमान मंदिर कहा जाता है. ज्येष्ठ महीने में पूरा मंदिर बनकर तैयार हुआ. मंदिर बनने पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कराई गई और बड़ा भंडारा हुआ.



Saturday 13 May 2017

गोलगप्पे को देखते ही जी ललचाए रहा ना जाए, अब जानिए इसकी हिस्ट्री


लड़का हो या लड़की, बच्चा हो या बूढ़ा सभी को पानी पुरी पसंद होती है. इसका नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. इसका स्वाद एक है लेकिन इसके नाम अनेक हैं. लोग इसे चटकारे लेकर बिना रुके ही खाते जाते हैं. इस देखते ही जी ललचाने लगता है और पानी पुरी के शौकीन लोगों से रहा नहीं जाता है. 

कुछ लोग तो इस पानी पुरी को देखते ही आपे से बाहर हो जाते हैं. जब तक इन लोगों को इसका स्वाद जुबान में नहीं लगता. तब तक उनकी प्यास और भूख नहीं मिटती है. लेकिन क्या कभी इसे खाते वक्त आपने ये नहीं सोचा कि पहली बार पानी पुरी कहां बनी और इसका नाम क्या था.

इस महान पानी पुरी की शुरुआत मगध क्षेत्र से हुई थी, जिसे आज दक्षिणी बिहार के नाम से जाना जाता है. यहीं पर पहली बार यह बनाई गई थी. मूलतः इसका नाम फुल्की है. लेकिन अब यह देश के साथ विदेशों तक पहुंच गई.

देश के राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से पहचाना जाता है. इसके कई नाम हैं. यह कहीं पर पानी पताशे के नाम से यह फेमस है तो कहीं इसे पतासी कहा जाता है, तो कहीं पर बताशी. वहीं कुछ जगहों पर इसे गुपचुप, गोलगप्पे, फुल्की और पकौड़ी भी कहा जाता है. यह एक ऐसा स्ट्रीट फूड है जिसका स्वाद तो एक है, लेकिन नाम अनेक हैं.

इसे सिर्फ स्वाद और जायके लिए नहीं खाया जाता है. इसके कई फायदे भी हैं.

यह चटपटी और मीठी होने के साथ है. इसे खाने से मुंह छालों में काफी राहत मिलती है.

अगर पानी को हींग के साथ तैयार किया जाए तो यह एसिडिटी को भी खत्म कर देता है.

पानी पुरी मार्गरीटा, चॉकलेट पानी पुरी और पानी-पुरी शॉट्स भी काफी पॉपुलर हो रहे हैं. यहां तक की अब तो पानीपुरी आइसक्रीम मार्केट में आ चुकी है.

पानी पुरी को आप हाई कैलोरी फूड की कैटेगरी में रख सकते हैं. एक प्लेट में 4-6 पीस होते हैं, जिसमें लगभग 100 कैलोरी होती है.

फायदे के साथ इसके नुकसान भी हैं. इसे हद से ज्यादा खाना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद नहीं है.

वजन कम करने वाले इसे न खाएं तो ही बेहतर है. क्योंकि यह ऐसा जंक फूड है जो वजन बढ़ा सकता है.

लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की खूबसूरत कहानी है बड़ा मंगल

  कलयुग के आखिरी दिन तक श्री राम का जाप करते हुए बजरंगबली इसी धरती पर मौजूद रहेंगे। ऐसा हमारे ग्रंथों और पौराणिक कहानियों में लिखा है। लखनऊ ...