Sunday 23 September 2018

आज से शुरू हो रहे पितृपक्ष




बप्पा की विदाई के बाद पूर्वजों का धरती पर आज से आगमन हो गया है. अपने वंश का कल्याण करने के लिए पंद्रह दिन के लिए पितृ घर में विराजमान रहेंगे. घर में सुख-शांति-समृद्धि प्रदान करेंगे. आज से शुरू हो रहे पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण कराते हैं और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं. श्राद्ध भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक चलते हैं. इसी दौरान पितरों को पिंडदान कराया जाता है. 
पितृपक्ष करने की एक विधि होती है और अगर इसे सही से ना किया जाए तो पूर्वज अतृप्त रहते हैं. 

Wednesday 12 September 2018

हैप्पी बर्थडे बप्पाः जानिए कैसे हुई गणेशोत्सव की शुरूआत, स्वतंत्रता आंदोलन से है कनेक्शन




आज देवों के देव महादेव के लाडले बेटे गणपति का हैप्पी बर्थडे है. आज के ही दिन बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्‍य के देवता भगवान गणेश का जन्‍म हुआ था. हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार, भादो माह की शुक्‍ल पक्ष चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्‍म हुआ था. उनके हैप्पी बर्थडे को ही गणेश चतुर्थी कहा जाता है.

वैसे तो गणपति के जन्मदिन को पूरा देश सेलिब्रेट करता है, लेकिन मुंबई और मध्य प्रदेश में खासतौर पर सेलिब्रेट करते हैं. बप्पा के जन्मदिन का जश्न दस दिन तक मनाया जाता है. यह गणेश चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी के दिन खत्म होता है. लोग बप्पा की मूर्ति घर लाते हैं और बप्पा का विसर्जन अगले साल आने के वादे के साथ करते हैं.

इनके जन्म की स्टोरी बहुत ही इंटरेस्टिंग है. कई बार टीवी पर देख चुके हैं तो अगले 9 दिनों विनायक की कहानी लिख देंगे, कहानी थोड़ी बड़ी है ना. अभी के लिए ये जान लीजिए की कब इसकी शुरूआत हुई. गणेश उत्‍सव सबसे पहले महाराष्‍ट्र में मनाया गया, जैसा कि सबको पता है बप्पा के जन्म का जश्न बहुत ही शानदार तरीके से मनाते हैं.

भारत में जब से पेशवाओं का शासन था, तब से गणेश उत्‍सव मनाया जाता है. मराठा शासक छत्रपति शिवाजी ने गणेशोत्सव को राष्ट्रीयता एवं संस्कृति से जोड़कर एक नई शुरुआत की थी. पेशवाओं के समय में विनायक को राष्ट्रदेव के रूप में दर्जा प्राप्त था, क्योंकि वे उनके कुलदेव थे. पेशवाओं के बाद ब्रिटिश शासन 1818 से 1892 तक लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे. यह पर्व हिन्दू घरों के दायरे में ही सिमटकर रह गया था, लेकिन हमारे वीर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया. उनका ये प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई.
बाकी जन्म की कहानी अगले आर्टिकल में...

Friday 7 September 2018

आज है इंटरनेशनल साक्षरता दिवस, जान लो कब हुई इसकी शुरूआत





आज सभी इंटरनेशनल साक्षरता दिवस सेलिब्रेट कर रहे हैं. डिजिटलाइजेशन के स्वैग में लगभग सभी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साक्षरता दिवस को लेकर काफी कुछ पोस्ट किया होगा और तस्वीरें शेयर की होंगी. लेकिन क्या कभी किसी ने ये सोचा इसे क्यों मनाते हैं या इसकी शुरूआत कब हुई होगी... सोचा ही होगा एक से एक बुद्धिजीवी है अपने देश में.

आज आठ सितंबर को हम 52 वां इंटरनेशनल साक्षरता दिवस मना रहे हैं तो ये जानना भी बनता है कि कैसे हुई इसकी शुरूआत और क्या है इसका मकसद.

साल 1966 में यूनेस्को माने संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ने शिक्षा के लिए  लोगों में जागरूकता की अलख ज्योत जलाने और वर्ल्ड के लोगों का ध्यान अट्रैक्ट करने के लिए हर साल 8 सितम्बर को इंटरनेशनल साक्षरता दिवस मनाने का सॉलिड फैसला किया. इस फैसले के बाद  दुनियाभर में हर साल 8 सितंबर को ये दिन मनाया जा रहा है.

भले ही इसे 1966 में लागू किया गया हो,लेकिन ये सोच लागू होने से पहले की है. निरक्षरता को खत्म करने के लिए इसे मनाने का ख्याल पहली बार ईरान में शिक्षा मंत्रियों के वर्ल्ड सम्मेलन के दौरान आया था. 8 से 19 सितंबर तक इसके बारे में जमकर चर्चा हुई.

फिर क्या जिस तरह जाने वाले को कोई नहीं रोक सकता तो आने वाले को कौनों ना रोक पाएगा. 26 अक्टूबर 1966 को यूनेस्को ने 14वें जरनल कॉन्फ्रेंस में घोषणा की. यूनेस्को ने कहा कि ध्यान से मेरी बात को गांठ बांध लो हर साल पूरी दुनिया में 8 सितंबर को 'अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस' के रूप में मनाया जाएगा.

बस इत्ती से कहानी है. वैसे तो सभी मानते हैं कि शिक्षा बिना इंसान अधूरा है, सोशल और पर्सनल तौर पर लोगों का विकास शिक्षा के जरिए ही संभव है, इसलिए सबका शिक्षित होना बेहद जरूरी, ताकि लोगों को अपनी परिस्थितियों से लड़ने में आसानी मिल सके. 
ज्यादा ज्ञान नहीं देंगे. बस सबको मदद करने की जरूरत छोटी हो या बड़ी फर्क नहीं पड़ता, जो बच्चे शिक्षा पाने में सक्षंम नहीं हैं, उनकी मदद ज्यादा कुछ नहीं. स्टेटस अपडेट करने से तो बेहतर है.....


Sunday 2 September 2018

कान्हा के जन्मदिन पर पढ़िए उनकी स्टोरी, रोम-रोम हो जाएगा पावन



हाथी घोड़ा पाल की जय कन्हैया लाल की... आज कान्हा के जन्मदिन की धूम पूरे देश में मची हुई. हर गली, मोहल्ले, चौराहे पर कान्हा के जन्मदिन को अपने ढंग से मनाया जा रहा है. मंदिरों में झंकियां सज चुकी हैं. कान्हा के जन्मदिन की तैयारियां कई दिनों पहले से चल रही थी.  नटखट कन्हैया के बारे में कई कहानियां सुनी और देखी होंगी. मन हो तो इसे भी पढ़ लीजिएगा.

लोगों का ऐसा मानना है कि कान्हा के जन्म की कहानी सुनने से भक्तों के कष्ट कम होते हैं... सुन तो नहीं सकते, लेकिन हां पढ़ने का मन हो तो पढ़ लीजिएगा.

कान्हा भगवान विष्णु के 8 वें अवतार हैं. ये बात तो सबको पता होगी, फिर भी लिख देती हूं. कान्हा के जन्म की बात करें तो बड़े संकटों के बाद वह इस दुनिया में आए, लेकिन जब आए तो स्वैग से सभी ने उनका स्वागत किया. कान्हा का खौफ उनके जन्म से पहले ही मामा कंस को था, इसलिए मामा कंस ने अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को काल कोठरी में डर की वजह से बंद कर दिया, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है.

भादो मास की अष्टमी की घनघोर काली रात में रोहिणी नक्षत्र में लडु गोपाल ने आंखें खोलीं. उसके बाद वसुदेव कान्हा को अपने बेस्ट फ्रेंड नंद के घर यमुना को पार कर छोड़ आए. उन्होंने कान्हा को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए.

मामा कंस को जैसे ही कारागार से बच्चे की रोने की आवाज सुनी. वह वहां पहुंच गया और कन्या को छीनकर पटक देना चाहा, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और कहा- 'अरे मूर्ख, तुझे मारनेवाला तो वृंदावन जा पहुंचा है. वह जल्द ही तेरे पापों का दंड देगा. मेरा नाम वैष्णवी है और मैं उसी जगद्गुरु विष्णु की माया हूं.' इतना कहकर वह गायब हो गईं.

ये जानने के बाद कान्हा को मारने के लिए मामा कंस ने कई कोशिशें की, लेकिन सारी प्लानिंग बार-बार फेल हो गईं. कान्हा को मारने के लिए मामा कंस ने पूतना, केशी, अरिष्ट नामक, काल नामक जैसे दैत्यों को भेजा, लेकिन मुरली बज्जैया श्याम सलोने का कुछ नहीं बिगाड़ सके.

जब सारे प्लान फेल हो गए तो मामा कंस ने कान्हा और बलराम को मथुरा बुलाया. उनके वहां पहुंचने पर कंस ने पहलवान चाणुर और मुष्टिक के साथ मल्ल युद्ध की घोषणा की. कान्हा और बलराम ने दोनों को ठिकाने लगा दिया. उसके बाद कंस के भाई केशी का संहार किया. सबसे आखिर में कंस की बारी थी तो रेडी बैठे थे मरने के लिए. कान्हा ने मामा कंस का वध किया.

कंस के मरने के बाद सभी देवताओं ने आकाश से दोनों पर फूलों की वर्षा की. उसके बाद कृष्ण ने अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त किया और उग्रसेन को मथुरा की गद्दी सौंप दी. बाकी तो सभी को पता है आगे क्या हुआ...

तो बोलो बंसी बजैय्या की जय...

लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की खूबसूरत कहानी है बड़ा मंगल

  कलयुग के आखिरी दिन तक श्री राम का जाप करते हुए बजरंगबली इसी धरती पर मौजूद रहेंगे। ऐसा हमारे ग्रंथों और पौराणिक कहानियों में लिखा है। लखनऊ ...