Thursday 16 August 2018

एक ‘अटल युग’ का अंत…



मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं... आपके लौटकर आने का इंतजार हमेशा रहेगा... अटल बिहारी वाजपेयी जी हम खुशनसीब हैं, जो हमने आपको सुना और देखा, जिस उम्र में बच्चे खेल में बिजी रहते हैं, उस उम्र में मैंने आपको पढ़ा और सुना. ज्यादा समझ ना होते हुए भी आपके भाषण को सुनती और कविताएं पढ़ती थी. बचपन में ही सोच लिया था, पहला वोट आपको ही करना है, लेकिन जब तक इस लायक हुए, तब तक काफी देर हो चुकी थी. ंमैंने हमेशा बीजेपी को आपके नाम से जाना है ना कि कमल से.

भारतीय राजनीति का ध्रुव तारा माने जाने वाले अटल जी के इरादे बुलंद थे, जिसके बलबूते पर उन्होंने देश की राजनीति में नए आयाम स्थापित किए और देश को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आज शाम पांच बजकर पांच मिनट पर दिल्ली के एम्स में अटल बिहारी वाजपेयी ने 93 साल की उम्र में अंतिम सांस ली.

इन सांसों को थमने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ी, क्योंकि अटल जी कभी हार मानने वालों में से नहीं थे. वे अटल थे, अटल हैं और हमेशा अटल रहेंगे. राजनीति में बदलाव की बयार को लाने वाले अटल जी कई सालों से इससे दूर थे. साल 2005 में मुंबई के शिवाजी पार्क में भाजपा की रजत जयंती समारोह के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए अटल जी ने घोषणा की कि वह चुनावी राजनीति से रिटायर होंगे.

देश को स्वस्थ लोकतंत्र देने वाले अटल जी सालों से कई बीमारियों से जूझ रहे थे. अटल जी जब तक स्वस्थ थे, देश की राजनीति भी फलफूल रही थी. अटल जी की सभाओं में दिए गए भाषण आज भी लोगों को सिखाते हैं कि राजनीति अभद्र होने का नाम नहीं है. दोस्ताना अंदाज से भी विरोधियों की आलोचना की जा सकती है.

वह तीन बार देश के पीएम बने, सबसे चहेते... आम से लेकर खास, हर दिल अजीज, लोगों को समझने वाले... प्रधानमंत्री... मेरे भी. पांच साल सरकार चलाने के अलावा वे दो बार 13 दिन और 13 महीने तक देश की सेवा की. दोनों बार उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्ष के तीखे हमले झेलने पड़े. फिर भी वह अटल इरादों के साथ आगे बढ़ते रहे.

उनके जाने से कलयुग के भव्य अटल युग का अंत हो गया है. एक महान जननायक, कवि, लेखक, वक्ता और भारत रत्न श्री अटलजी को विनम्र श्रद्धांजलि...
शब्दों को विराम देते हुए अटल जी की लिखी अपनी फेवरेट कविता को सभी के साथ शेयर कर रही हूं.

कौरव कौन, कौन पांडवटेढ़ा सवाल है...
दोनों ओर शकुनि का फैला कूटजाल है...
धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है...
हर पंचायत में पांचाली अपमानित है...
बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है...
कोई राजा बने, रंक को तो रोना है...






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