Sunday 18 March 2018

नवरात्र के पहले दिन को खास बनाएगी इस संघर्षशील महिला की कहानी



आज से नवरात्र शुरू हो गए हैं. नौ दिनों तक मंदिरों में भक्तों की भीड़ रहने वाली है. पापी,चंडाली, औरतों और लड़कियों को सताने वाले लोग भी मां के दरबार में जाकर जयकारे लगाएंगे. भले ही घर पर अपनी मां और पत्नी को बेइज्जत करें. लेकिन इन नौ दिनों में हर वो चीज करेंगे, जो अंबे मां को प्रसन्न कर सके. नवरात्र के दिन बड़े ही पावन होते है. इन पावन दिनों को और भी खास बनाया है. कुछ सिंपल दिखने वाली औरतों ने जिन्होंने हर लड़ाई को जीतकर अपनी पहचान बनाई है. नवरात्र के नौ दिनों में ऐसी ही महिलाओं की बात करने वाले हैं.

नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां का स्वरूप इस प्रकार है- सिर पर मुकुट और उसमें त्रिशूल शोभित है. इनके दाएं हाथ में त्रिशूल, बाएं हाथ में कमल सुशोभित है.

ऐसी ही एक महिला हैं, जिनके सिर पर भले ही मुकुट ना हो. लेकिन उन पर मां नर्मदा का आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा. जिनकी आवाज एक गूंज बनकर उभरी. जब-जब नर्मदा की बात की जाती है तो मेधा पाटकर की बात जरूर होगी. आइए जानते हैं इनके जीवन का खास हिस्सा.

मेधा पाटकर को 'नर्मदा की आवाज' के रूप में जाना जाता है. मेधा ने 'सरदार सरोवर परियोजना' से प्रभावित होने वाले लगभग 37 हजार गांव के लोगों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी.

मेधा का जन्म 1 दिसंबर 1954 को मुंबई में हुआ था. मेधा के माता-पिता सोशल वर्कर थे.
मेधा ने टाटा इंस्टी ट्यूट ऑफ सोशल साइंस से सोशल वर्क में एमए कम्पलीट किया और अपने काम में लग गईं. मुंबई से शुरू हुए सफर की पहली सीढ़ी की ओर बढ़ी. झुग्गियों में बसे लोगों की सेवा करने वाली संस्था.ओं से जुड़ गईं।

28 मार्च 2006 को मेधा ने ने नर्मदा नदी के बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठने का फैसला किया. मेधा को पता था कि जिस मंजिल तक वह पहुंचने का रास्ता मुश्किल होने वाला है. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. पूरा समय नर्मदा नदी पर लगाने के लिए उन्होनें अपनी पी.एच.डी की पढ़ाई तक छोड़ दी थी.

17 अप्रैल 2006 को सुप्रीम कोर्ट से नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत बांध पर निर्माण कार्य रोक देने की अपील को खारिज कर दिया. लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी.

नर्मदा बचाओ आंदोलन के अलावा भी मेधा ने कई लड़ाइयां लड़ी हैं. समाज की सेवा के साथ मेधा ने राजनीति में भी एंट्री की. लेकिन राजनीति उन्हें रास ना आई. 13 जनवरी 2014 को उन्होंपने आम आदमी पार्टी में सम्मि लित होने के घोषणा की. लोकसभा चुनाव 2014 में मेधा उत्त र-पूर्व मुंबई से आम आदमी पार्टी के उम्मीीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था.

मेधा के कार्यों के लिए पुरस्कारों से भी नवाजा गया, जो इस प्रकार हैं.
साल    पुरस्कार
1991-सही आजीविका पुरस्कार
1992- गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार
1995- बीबीसी, इंग्लैंड द्वारा सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक प्रचारक के लिए ग्रीन रिबन अवार्ड
1999- एमनेस्टी इंटरनेशनल, जर्मनी से मानव अधिकार डिफेंडर का पुरस्कार
1999- विजील इंडिया मूवमेंट से एम.ए. थॉमस नेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड
1999- बीबीसी के व्यक्ति का वर्ष
1999- दीना नाथ मंगेशकर पुरस्कार
1990- शांति के लिए कुंडल लाल पुरस्कार
2013- भीमा बाई अम्बेडकर पुरस्कार

2014- सामाजिक न्याय के लिए मदर टेरेसा पुरस्कार

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